टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में कुछ ही खिलाड़ी ऐसे होते हैं जो लंबे समय तक अपनी बहुमुखी प्रतिभा, संयम और नेतृत्व के कारण याद रखे जाते हैं। श्रीलंका के एंजेलो मैथ्यूज़ ऐसे ही एक दुर्लभ रत्न हैं। उनका टेस्ट करियर न केवल आँकड़ों में समृद्ध है, बल्कि वह प्रेरणा, संघर्ष और पुनर्निर्माण की कहानी भी है।
शुरुआती दिन: उम्मीद की झलक
एंजेलो मैथ्यूज़ ने 2009 में गाले में पाकिस्तान के खिलाफ अपना टेस्ट डेब्यू किया था। उस समय वह एक ऑलराउंडर के रूप में जाने जाते थे, जो निचले क्रम में आकर तेज़ी से रन बना सकते थे और ज़रूरत पड़ने पर मीडियम पेस बॉलिंग भी कर सकते थे। तब ही उनके अंदर की परिपक्वता और धैर्य की झलक दिखने लगी थी।

समय के साथ, लगातार चोटों के कारण उन्होंने गेंदबाज़ी कम कर दी और खुद को एक विशेषज्ञ बल्लेबाज़ में बदल लिया। इस परिवर्तन को उन्होंने बहुत सहजता और गरिमा से अपनाया, जो उनके क्रिकेट दृष्टिकोण की गहराई को दर्शाता है।
मध्यक्रम की मज़बूत दीवार
महान खिलाड़ियों जैसे कुमार संगकारा और महेला जयवर्धने के संन्यास के बाद, श्रीलंका के टेस्ट मध्यक्रम में स्थिरता की सख्त ज़रूरत थी। मैथ्यूज़ ने वह ज़िम्मेदारी बख़ूबी निभाई। वह ऐसे बल्लेबाज़ बने जो दबाव में भी पारी को थाम सकते थे।
2014 में हेडिंग्ले, इंग्लैंड में बनाया गया 160* रन का स्कोर आज भी उनकी सबसे शानदार पारियों में गिना जाता है। सीमिंग कंडीशन में, उन्होंने जिस तरह टीम को ऐतिहासिक सीरीज़ जीत दिलाई, वह उनकी बल्लेबाज़ी की परिपक्वता को दर्शाता है।
नेतृत्व की भूमिका
एंजेलो मैथ्यूज़ ने कई बार श्रीलंका की कप्तानी की है — अक्सर तब जब टीम मुश्किल दौर से गुजर रही होती थी। उनका नेतृत्व शांत, सोच-समझकर लिया गया और प्रेरणादायक रहा है। उन्होंने हमेशा टीम को प्राथमिकता दी और युवा खिलाड़ियों को मौका दिया।
उनकी कप्तानी की सफलता केवल जीत-हार में नहीं, बल्कि टीम की मानसिकता और प्रतिबद्धता में दिखी। वे कभी ज़ोर से नहीं बोले, लेकिन मैदान पर उनकी मौजूदगी हमेशा विश्वास दिलाती थी।
बार-बार वापसी करने वाले योद्धा
मैथ्यूज़ का करियर बार-बार लगी चोटों से जूझता रहा, खासकर उनके पैर की मांसपेशियों में। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। हर चोट के बाद वे और मज़बूत होकर लौटे।
2021 में उन्हें फिटनेस के कारण टीम से बाहर कर दिया गया, लेकिन उन्होंने इसे चुनौती की तरह लिया। 2022-23 में उन्होंने वापसी कर शानदार पारियाँ खेलीं और यह साबित किया कि वह अभी भी टीम के सबसे भरोसेमंद स्तंभ हैं।

गेंदबाज़ी और फ़ील्डिंग में योगदान
हालाँकि उन्होंने बाद में गेंदबाज़ी छोड़ दी, लेकिन अपने करियर के शुरूआती वर्षों में उन्होंने कई अहम विकेट लिए। स्लिप फील्डर के रूप में भी वह भरोसेमंद रहे हैं। उनकी उपस्थिति मैदान में ऊर्जा और अनुभव का संचार करती है।
एक शांत किंवदंती
मैथ्यूज़ कभी सुर्खियों में नहीं रहे। न ज्यादा जश्न, न ज़्यादा बयान। लेकिन उनके अंदर की दृढ़ता, खेल के प्रति सम्मान और टीम के लिए समर्पण ने उन्हें श्रीलंका क्रिकेट की असली रीढ़ बना दिया है।
उनके 7,000 से अधिक टेस्ट रन यह बताते हैं कि उन्होंने न केवल लम्बा करियर खेला, बल्कि उसमें निरंतरता भी दिखाई।
टेस्ट क्रिकेट के लिए समर्पण
आज के दौर में जब क्रिकेट का झुकाव टी20 और वनडे की ओर बढ़ गया है, एंजेलो मैथ्यूज़ जैसे खिलाड़ी टेस्ट क्रिकेट को जीवित रखने का काम कर रहे हैं। उन्होंने हमेशा लाल गेंद के खेल को प्राथमिकता दी, क्योंकि उन्हें लगता है कि असली तकनीक, मानसिक दृढ़ता और धैर्य की परीक्षा इसी फॉर्मेट में होती है।
उनकी बल्लेबाज़ी की शैली तेज़-तर्रार नहीं है, लेकिन उसमें आत्म-नियंत्रण और तकनीकी सटीकता है। वह मैदान पर एक सच्चे योद्धा की तरह उतरते हैं — न फालतू शोर, न अनावश्यक आक्रामकता। सिर्फ टीम के लिए योगदान देने की लगन।
युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा
मैथ्यूज़ सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं हैं, बल्कि वे एक “रोल मॉडल” हैं। श्रीलंका के कई युवा क्रिकेटर खुले दिल से स्वीकार करते हैं कि उन्होंने मैथ्यूज़ से पेशेवर रवैया, क्रिकेट की समझ और मैदान पर अनुशासन सीखा है।
जब एक अनुभवी खिलाड़ी युवा खिलाड़ियों को अवसर देता है, उनके साथ समय बिताता है और उन्हें अपने अनुभव से मार्गदर्शन करता है — तब वह क्रिकेट से कहीं ज़्यादा करता है। मैथ्यूज़ ने यही किया है।

आंकड़ों से आगे की कहानी
एंजेलो मैथ्यूज़ के नाम 100+ टेस्ट मैच, 7,000 से अधिक रन, और 30 से अधिक अर्धशतक हैं। लेकिन उनका महत्व सिर्फ इन आंकड़ों में नहीं छुपा है। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह तब खड़े हुए जब बाकी टीम ढह रही होती थी। जब शीर्ष क्रम असफल होता, तब मैथ्यूज़ जिम्मेदारी लेते और कंधे पर टीम को खींच ले जाते।
उनकी कुछ पारियाँ — जैसे भारत के खिलाफ दिल्ली में किया गया संघर्षपूर्ण शतक, या न्यूजीलैंड में गेंदबाज़ों को थकाकर बनाए गए रन — क्रिकेट के असली “ग्रिट” की मिसाल हैं।
मैदान से बाहर भी एक आदर्श
मैथ्यूज़ क्रिकेट के बाहर भी बेहद सम्मानित व्यक्तित्व हैं। वह विवादों से दूर रहते हैं, मीडिया में विनम्र रहते हैं, और अपने देश के प्रति सम्मान दिखाते हैं। एक खिलाड़ी के लिए मैदान के बाहर का आचरण भी बहुत मायने रखता है, और इस मामले में मैथ्यूज़ ने युवाओं के लिए एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है।
भविष्य की भूमिका?
भले ही अब एंजेलो मैथ्यूज़ अपने करियर के अंतिम चरण में हैं, लेकिन यह तय है कि श्रीलंका क्रिकेट को उनकी जरूरत अभी खत्म नहीं हुई है। भविष्य में उन्हें एक मेंटर, कोच, या चयनकर्ता के रूप में देखना आश्चर्य की बात नहीं होगी। उनका अनुभव और सोच आने वाले वर्षों में भी श्रीलंका की क्रिकेट को दिशा दे सकती है।
निष्कर्ष
एंजेलो मैथ्यूज़ का टेस्ट करियर केवल आंकड़ों का नहीं, बल्कि उनके चरित्र, आत्मविश्वास और लचीलापन का प्रतिबिंब है। उन्होंने कठिन समय में श्रीलंका के लिए लड़ाई लड़ी और जब-जब टीम को एक मज़बूत स्तंभ की ज़रूरत पड़ी, वह हमेशा खड़े मिले। आने वाले वर्षों में भले ही वह क्रिकेट को अलविदा कहें, लेकिन उनकी विरासत लंबे समय तक श्रीलंकाई क्रिकेट में जीवित रहेगी।